टीचर यूनियन के नेताओं के खिलाफ कार्रवाई भारतीय संविधान का घोर उल्लंघन : सीटू

24 April 2021

बाघल टाइम्स 

(शिमला)

सीटू राज्य कमेटी ने हिमाचल प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा टीचर यूनियन के नेताओं के खिलाफ जारी किए गए पत्रों व दंडात्मक कार्रवाई की कड़ी निंदा की है। सरकार का यह निर्णय पूर्णतः तनाशाहीपूर्वक है तथा संविधान व लोकतंत्र विरोधी है। सीटू ने मांग की है कि टीचर यूनियन के नेताओं को प्रताड़ित करना बन्द किया जाए।

सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने कहा है कि अध्यापक आंदोलन की प्रदेश के ट्रेड यूनियन आंदोलन में एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हिमाचल के ट्रेड यूनियन आंदोलन में हिमाचल प्रदेश के निर्माण के बाद से ही अध्यापक आंदोलन का एक स्वर्णिम इतिहास रहा है। इसने अध्यापकों,छात्रों व कर्मचारियों की आवाज़ को निरन्तर बुलन्द करने का कार्य किया है। अध्यापक नेताओं के खिलाफ प्रदेश सरकार की कार्रवाई अध्यापक,छात्र व कर्मचारी विरोधी है व ट्रेड यूनियन आंदोलन को दबाने की साज़िश है जिसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा है कि यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 19 का खुला उल्लंघन है जो किसी भी व्यक्ति को अपनी यूनियन बनाने,भाषण देने,अपनी बात उठाने व बोलने की आज़ादी देता है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 का भी उल्लंघन है जो हर व्यक्ति को गरिमामयी जीवन जीने का अधिकार देता है व इस हेतु आवाज़ बुलंद करने का लोकतांत्रिक अधिकार देता है।

उन्होंने कहा है कि हिमाचल सरकार के शिक्षा विभाग की टीचर यूनियन के नेताओं के खिलाफ कार्रवाई भारतीय संविधान का घोर उल्लंघन है जो हर नागरिक की अपनी बात रखने का अधिकार देता है। आधुनिक युग में मांग-पत्र देने के साथ ही कोई भी व्यक्ति अपनी मांगों को इलेक्ट्रॉनिक,प्रिंट व सोशल मीडिया पर भी उठा सकता है व सरकारी की कर्मचारी विरोधी नीतियों पर सवाल उठा सकता है। हमारी व्यवस्था में मीडिया को चौथे स्तम्भ का दर्जा हासिल है व उस पर अपनी मांग उठाना अथवा सरकारी की कर्मचारी विरोधी नीतियों पर उंगली उठाना कोई संविधान विरोधी कार्य नहीं है। इस दिशा में त्रिपुरा उच्च न्यायालय भी कुछ वर्ष पूर्व यह निर्णय दे चुका है।

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