संस्कृत विरोधी मानसिकता स्वीकार नहीं, डीएमके नेता  दयानिधि मारन के संस्कृत विरोधी बयान की हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद् द्वारा कड़ी निंदा

संस्कृत विरोधी मानसिकता स्वीकार नहीं, डीएमके नेता  दयानिधि मारन के संस्कृत विरोधी बयान की हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद् द्वारा कड़ी निंदा

बाघल टाइम्स

शिमला ब्यूरो (16 फरवरी)हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद् के द्वारा संसद में डीएमके (DMK) नेता श्री दयानिधि मारन द्वारा संस्कृत भाषा के विरुद्ध दिए गए घिनौने और अपमानजनक बयान की कड़ी निन्दा की है। हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद् के प्रदेशाध्यक्ष डॉ मनोज शैल प्रदेश महासचिव डॉ अमित शर्मा, वित्तसचिव सोहनलाल, वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉ सुशील शर्मा, उपाध्यक्ष डॉ जंगछुब नेगी, रजनीश कुमार, राकेश कुमार, शांता कुमार, महिला संयोजिका अर्चना शर्मा, हमीरपुर के अध्यक्ष नरेश मलोटिया, सोलन के डॉ कमलकांत गौतम, कांगड़ा के डॉ अमनदीप शर्मा, ऊना के बलवीर चन्द, मण्डी के लोकपाल, सिरमौर के अध्यक्ष वेद पराशर, शिमला के अध्यक्ष संजय शर्मा, बिलासपुर के राजेन्द्र शर्मा, कुल्लू के हेमलाल, चम्बा के अमर सेन, लाहौल के सुरेश बोध, एवं किन्नौर के अध्यक्ष फुन्चोक नेगी ने संयुक्त वक्तव्य में कहा कि संस्कृत भारत की ज्ञान-परंपरा की आत्मा है, और इस भाषा का विरोध करना भारतीय संस्कृति, परंपरा एवं सभ्यता पर हमला करने के समान है।

संस्कृत न केवल भारत की प्राचीनतम भाषा है, बल्कि वैश्विक स्तर पर ज्ञान- विज्ञान, चिकित्सा, गणित, दर्शन, योग, आयुर्वेद, तकनीकी और साहित्य की आधारशिला रही है। संस्कृत को यूनेस्को सहित कई अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने सबसे वैज्ञानिक भाषा के रूप में मान्यता दी है। ऐसे में संसद में इस भाषा के विरुद्ध अनर्गल टिप्पणी करना भारतीय अस्मिता और सांस्कृतिक धरोहर का घोर अपमान है।

 

संस्कृत के संरक्षण में केंद्र सरकार और लोकसभा अध्यक्ष की सराहना

 

हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद् ने संस्कृत भाषा के उत्थान और संरक्षण के लिए केंद्र सरकार तथा लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला द्वारा किए जा रहे प्रयासों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार संस्कृत भाषा को नई शिक्षा नीति (NEP 2020) के अंतर्गत पुनर्जीवित करने और इसे मुख्यधारा में लाने के लिए ठोस कदम उठा रही है।

 

लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला द्वारा संसद में संस्कृत के प्रयोग को प्रोत्साहित करना, प्रश्न पूछने और उत्तर देने की अनुमति देना, और संस्कृत के संवर्धन के लिए सकारात्मक वातावरण तैयार करना अत्यंत सराहनीय है। इससे न केवल भारत के प्राचीन ग्रंथों और शास्त्रों की प्रासंगिकता बनी रहेगी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी संस्कृत अध्ययन के प्रति प्रेरणा मिलेगी।

सस्कृत विरोधी मानसिकता स्वीकार नहीं

 

संस्कृत शिक्षक परिषद् ने स्पष्ट रूप से कहा कि संस्कृत विरोधी मानसिकता भारत विरोधी मानसिकता के समान है, क्योंकि यह भाषा भारत की आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक उन्नति का प्रतीक रही है। उन्होंने कहा कि डीएमके नेता का यह बयान तुच्छ राजनीतिक लाभ के लिए भारतीय संस्कृति को कमजोर करने का प्रयास है, जिसे किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता।

 

उन्होंने सरकार से मांग की कि संस्कृत भाषा का अनादर करने वाले लोगों के विरुद्ध उचित कार्यवाही की जाए और भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए ठोस नीतियाँ बनाई जाएँ।

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